Friday 1 March 2013

"नेता जी "(कुण्डलिया छंद )


झूठे हैं जिसके वचन, भाषण जिसका काम !
खाये सबकी गालियाँ, उसका नेता नाम !!
उसका नेता नाम, जो लूटे और खाये !
बेच शर्म औ लाज, सही को झूठ बताये !!
दिखता बंदरबाट, फिर क्यों न जनता रूठे !
रहा नही विश्वास, सभी नेता हैं झूठे!!


Saturday 19 January 2013

"हूंकार"

शब्दों में एक ज्वाला भर लो ,
लड़ने को अब कमर कस लो !
दुर्दशा पर चटखारे ना ले कोई ,
इतना खुद को सशक्त कर लो !!

शायद डर से गुमराह हो ,
अपना रास्ता खुद ही चुन लो !
इस हाल के ज़िम्मेदार है जो ,
उनसे अब दो दो हाँथ कर लो !!

यदि सहना है  उत्पीडन इनका ,
यूँ ही खुद को बदनाम कर लो!
पड़े रहो मुर्दों  की तरह,
खुद को इनका गुलाम कर लो!!

लड़ नहीं सकते जब तुम ,
कायर सा फिर जीना क्यूँ !
तिल तिल कर मरने से अच्छा ,
खुद का ही काम तमाम कर लो !! 

Friday 18 January 2013

"सर्द रातों का आतंक "

सर्द रातों का आतंक ,
सबका बुरा हाल हुआ !
रूह कपा देने वाली ठण्ड से ,
खड़ा एक एक बाल हुआ !!

क़यामत की धुंधली रातों में 
डरे ,कांपते हुए जो सिमटे है !
उन गरीबों का क्या हाल होगा ,
जो फटे कम्बल में लिपटे है !!

सुख सुविधाओ से परिपूर्ण वो ,
क्या जाने सर्द रातों का स्याह सच !
कैसे ढकता बदन वह ,
एक अधखुला कवच !!

कहर बरसाती ठण्ड रातें ,
बर्फीली हवा झेलते फेफड़े ,
नेता जी कम्बल घोटाला करके ,
कलेजे पे रखते बर्फ के टुकड़े!!

उनकी याद

उनकी याद  में मै,
खुद को भूल जाने लगा !
सब ज़गह उनका ही ,
अक्स नज़र आने लगा !!

उनके प्यार की,
हसीन वादियों में !
घूमता रहता हूँ अक्सर ,
अब तो रेगिस्तान भी ,
हरा भरा नज़र आने लगा !!!

कैसे काट रहा हूँ ,
किस मोड़ पर है ज़िन्दगी !
अब तो धडकनों का भी ,
रुख बदला नज़र आने लगा !!

उनके प्यार में ,
कमज़ोर हुआ कुछ इस कदर !
अब तो खुद को ,
पागल कहलाने लगा !!!
ram s pathak

Thursday 17 January 2013

अधखुली दुनियां


आजकल हास्य के लिए ,
अश्लीलता का सहारा लिया जाता है !
जनता खूब हंसती भी है ,
उन्हें भी आनंद आता है !!

जब प्रतिदिन नवीन आविष्कार हो रहे ,
अश्लीलता और नग्नता पर !
आत्मा कह रही मेरी ,
तू भी कुछ नया कर !!

इस अधखुली दुनियां की ,
बात बहोत ही निराली है !
चमक तो दिखता है ,
पर दिन भी होती काली है !

टिप्पणी करने से डरता हूँ ,
क्या कहूँ ?कैसे कहूँ ?
उलझता जा रहा हूँ ,
इस अधखुली दुनियां में !!

राम शिरोमणि पाठक "दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित  
अधखुली दुनियां 

दर्द



एक तो उन्हें बेदर्दी से,आपने रुला दिया /
राज दिलका सारा,रुलाकर खुला दिया //
उनके रोने पे आप,हंसने की बात करते हो ?/
बड़े ही बेदर्द हो,ये कैसी मुलाक़ात करते हो ?//
माना कि उनकी याद में,बहुत रोये हो /
तन्हा-तन्हा अँधेरी,रातों में सोये हो //
काश ! रुलाने का सिला,प्यार उनके दामन में डालते /
तो शायद वरमाला पहनाकर,वे दिल आपपर उछालते //